श्रद्धाजंलि समारोह और षोड़शी भंडारा*
देवभक्ति के साथ देवभक्ति का संदेश*
सभी पूज्य संतों, पूज्य महामण्डलेश्वरवृंद, सम्पूर्ण परमार्थ परिवार, श्री देवी सम्पद मण्डल परिवार ने शान्तिपाठ के साथ अर्पित की श्रद्धाजंलि*
*परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, एवं पूज्य स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती जी महाराज, मुख्य अधिष्ठाता, (मुमुक्ष आश्रम, शाहजहांपुर) ने सभी पूज्य संतों का किया अभिनन्दन*
*ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर पूज्यपाद स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज को परमार्थ निकेतन मां गंगा के पावन तट से भारत के विभिन्न प्रांतों से आये पूज्य संतों, महामण्डलेश्ववृंद और पूज्य आचार्यों ने अर्पित की भावभीनी श्रद्धांजलि*
*षोडशी के अवसर पर परमार्थ गंगा तट विशाल भंडारा का आयोजन*
*पूज्य संतों, महामण्डलेश्वरवृंद और आचार्यों ने अर्पित की भावभीनी श्रद्धाजंलि*
*सभी पूज्य संतों, महामण्डलेश्वर वृंद और सभी अतिथियों को भेंट किये रूद्राक्ष के पौधें*
*निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी विशोकानन्द भारती जी महाराज (श्री सोमेश्वर धाम श्रीयंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार), पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय महामण्डलेश्वर स्वामी गुरूशरणानन्द जी महाराज, योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज, पूज्य गोविन्ददेव गिरि जी महाराज, अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत श्री रवीन्द्र पुरी जी महाराज, महामण्डलेेश्वर स्वामी हरिचेतना नन्द जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानन्द जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी आनन्द देव जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी चिदम्बरानन्द जी महाराज (चिदम्बरम आश्रम), महामण्डलेश्वर स्वामी हरिहरानन्द जी महाराज, साध्वी भगवती सरस्वती जी, स्वामी ज्योतिर्मयानन्द जी महाराज, स्वामी श्री ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज, स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी महाराज, स्वामी विवेकानन्द जी महाराज, स्वामी श्री गिरधर पुरी जी महाराज, स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज, साध्वी भगवती सरस्वती जी, स्वामी चेतनाानन्द जी महाराज, स्वामी बलरामदास जी महाराज, स्वामी ऋषिश्वरानन्द जी महाराज, स्वामी श्री दुर्गादास जी महाराज, स्वामी अनंतदेव जी महाराज, स्वामी श्री मनोज गिरि जी महाराज, स्वामी गोविन्ददास जी महाराज, स्वामी राहुल गिरि जी महाराज, स्वामी श्री शंकर करौली जी महाराज, स्वामी श्री सोमेश्वर जी महाराज, स्वामी शिवानन्द जी महाराज, स्वामी श्री जयंत सरस्वती जी महाराज, साध्वी आभा सरस्वती जी, दशनाम अखाडा के पूज्य संत, और पूरे भारत से पधारे पूज्य संतों का पावन सान्निध्य*
*देशभर के पूज्य संतों, विभिन्न आश्रमों, आध्यात्मिक संस्थानों और अनगिनत भक्तों की ओर से सांत्वना एवं विनम्र श्रद्धांजलि संदेश निरंतर प्राप्त हो रहे हैं। मानस मर्मज्ञ पूज्य मोरारी बापू, पूज्य श्री रमेशभाई ओझा जी, भाईश्री, देव संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या जी, महामण्डलेश्वर स्वामी ईश्वरदास जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानन्द जी महाराज, श्री स्वामीनारायण आश्रम सहित अनेक संतों, भक्तों और श्रद्धालुओं के भावभरे संदेश इस बात का प्रमाण हैं कि ब्रह्मलीन पूज्य महामण्डलेश्वर, स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी संत परंपरा की आत्मा थे*
*निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी विशोकानन्द भारती जी महाराज (श्री सोमेश्वर धाम श्रीयंत्र मंदिर, कनखल, हरिद्वार) ने आज के श्रद्धाजंलि कार्यक्रम की अध्यक्षता की और पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज के नेतृत्व व मार्गदर्शन में श्रद्धाजंलि कार्यक्रम आयोजित*
ऋषिकेश,। की प्राचीन, अक्षुण्ण और दिव्य सनातन संत परंपरा के एक उज्ज्वल नक्षत्र, परम पूज्य, परम विरक्त, ऋषितुल्य संत, ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज की पावन स्मृति में आज परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के गंगा तट पर राष्ट्रव्यापी श्रद्धांजलि समारोह एवं षोडशी भंडारा का आयोजन किया गया।
यह आयोजन उनकी स्मृतियों को समर्पित किया जो सनातन धर्म की जीवंत चेतना, संत परंपरा की अखंड धारा और तपस्वी जीवन मूल्यों का दिव्य उत्सव बन गया, जिसमें देशभर से पधारे संत-महात्माओं, महामण्डलेश्वर वृंद, आचार्यों और सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक आलोक से भर दिया।
प्रातः काल से ही गंगा तट पर स्थित परमार्थ निकेतन में संत समाज का सान्निध्य उमड़ने लगा। केसरिया वस्त्रों में दीप्तिमान संतों की उपस्थिति, वेद मंत्रों की गूंज, गंगा की अविरल धारा और श्रद्धालुओं की नम्र नमन श्रद्धाजंलि से पूरा वातावरण ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सनातन संस्कृति स्वयं सजीव होकर साक्षी बन गई हो।
देश के विभिन्न पीठों, अखाड़ों और आश्रमों से पधारे पूज्य महामण्डलेश्वरवृंद एवं संतवृंद ने एक स्वर में ब्रह्मलीन पूज्य महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनके तपस्वी जीवन, साधना और विरक्ति को सनातन धर्म की अमूल्य धरोहर बताया।
ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज का संपूर्ण जीवन विरक्ति, तपस्या और साधना का जीवंत शास्त्र रहा। उन्होंने न कभी स्वयं को प्रचारित किया, न ही बाह्य प्रदर्शन को महत्व दिया। उनका जीवन स्वयं एक उपदेश था, जहाँ शब्दों से अधिक साधना बोलती थी।
पूज्य संतों ने अपने उद्बोधनों में कहा कि पूज्य स्वामी जी ऐसे महापुरुष थे जिनकी दृष्टि ही दीक्षा थी और जिनका सान्निध्य ही साधना बन जाता था। उनकी उपस्थिति से मन सहज ही शांत हो जाता था।
ब्रह्मलीन पूज्य महामण्डलेश्वर जी का गीता जयंती एवं मोक्षदा एकादशी जैसे परम पावन दिवस पर ब्रह्मलीन होना कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि एक दिव्य विधान था। यह इस बात का संकेत है कि उनका जीवन केवल देह तक सीमित नहीं था, बल्कि वह स्वयं गीता के कर्मयोग, त्याग और वैराग्य का साकार रूप थे।
इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि
स्वामी जी ने कहा कि पूज्य संत, देह से विदा हो सकते हैं, किंतु चेतना से कभी विदा नहीं होते। वे दृश्य से अदृश्य की यात्रा करते हैं और समय की सीमाओं से परे जाकर युगों की स्मृति बन जाते हैं।
श्रद्धांजलि समारोह के उपरांत विशाल षोडशी भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें संतों, श्रद्धालुओं और आगंतुकों ने सहभाग किया। सेवा, समर्पण और समानता की भावना से सम्पन्न हुआ।
आज का यह आयोजन स्पष्ट संदेश देता है कि सनातन धर्म केवल अतीत नहीं, बल्कि सतत प्रवाहित वर्तमान है। संत, किसी कालखंड में नहीं जीते, वे चेतना में बस जाते हैं। उनका जीवन हमें स्मरण कराता है कि संसार क्षणभंगुर है, पर मूल्य, साधना और करुणा शाश्वत हैं।
ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज भले ही स्थूल रूप में हमारे मध्य न हों, किंतु उनकी तपश्चर्या, उनकी साधना और उनका जीवन दर्शन सनातन चेतना के रूप में युगों-युगों तक जीवित रहेगा।
इस दिव्य अवसर पर पधारे पूज्य संतों का श्रद्धाजंलि उद्बोधन
आचार्य महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 स्वामी विशोकानन्द भारती जी महाराज ने पूज्यपाद स्वामी एकरसानन्द जी महाराज को प्रणाम करते हुये कहा कि मुझे 3 वर्षों तक परमार्थ निकेतन में विद्या अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परमार्थ निकेतन गंगा तट को तीर्थ का स्वरूप प्रदान करते में पूज्य स्वामी असंगानन्द जी महाराज का विशेष योगदान है। वे विद्यागुरू, ज्ञानगुरू और साधना गुरू के साक्षात स्वरूप थे।
पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय महामण्डलेश्वर स्वामी गुरूशरणानन्द जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी असंगानन्द जी महाराज में आचार्यत्व विद्यमान था, उन्होंने वाणी से नहीं आचरण से शिक्षा दी। उनसे प्राप्त शिक्षाविधि को हम आचरण में उतारे, उनके बताये मार्ग पर चले यही सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।
स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज ने कहा कि श्री देवी सम्पद् मण्डल व हम सब ने पूज्य स्वामी असंगानन्द जी महाराज के रूप में एक सच्चे साधु को खो दिया। सच्चे साधुओं में उनका स्थान बहुत बड़ा था, उनके पास जाकर बैठने से ही उनके साधनामय जीवन का अनुभव होता था। वास्तव में स्वामी असंगानन्द जी के निर्वाण से गंगा जी भी गद्गद हो गयी।
स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने कहा कि श्री देवी सम्पद् मंडल देश का अनूठा संगठन है। देवी सम्पद् मंडल का विस्तार पूरे विश्व में है। पूज्य स्वामी असंगानन्द जी गंगा जी के तट पर रहकर गंगा जी की पवित्रता का संदेश पूरे विश्व को देेते रहें। देवी सम्पद् मंडल की परम्पराओं को अक्षुण्य बनाये रखने में हम सब योगदान देते रहें। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन का सबेरा सूर्य के उदय के साथ नहीं बल्कि पांच बजे प्रातः की प्रार्थना- ब्रह्मानंदम परम सुखदं के साथ होता है, इस परम्परा को बनाये रखना पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज की है। प्रातः पांच बजे की प्रार्थना और परमार्थ निकेतन की गंगा आरती पूरे विश्व के लिये एक सौगात है। इसे हम सब मिलकर हर घर व प्रत्येक जन जन तक पहुंचाना है।
योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि असंगता व साधुता को स्वामी असंगानन्द जी महाराज ने साक्षात जिया हैं। उनका जीवन विवेक, वैराग्य व संतत्व का साक्षात स्वरूप था, उनकी षोड़शी में आना हमारे जन्म जन्मान्तरों के सौभाग्य का फल है।
स्वामी ब्रह्मस्वारूप ब्रह्मचारी जी ने कहा कि जयराम आश्रम और परमार्थ निकेतन एक सिक्के के दो पहलु के समान है और आज भी एक परिवार की तरह ही हैं। स्वामी जी ने गंगा जी की पवित्र गोद में बैठकर पूरा जीवन सेवा हेतु समर्पित कर दिया। उनके सान्निध्य में बैठकर ही मन हल्का हो जाता था।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत रवीन्द्र पुरी जी ने कहा कि पूज्य स्वामी जी महामानव थे, आध्यात्मिक चेतना के धनी थे। उन्होंने सम्पूर्ण अखाड़ा परिषद् की ओर से श्रद्धाजंलि भेंट की। उन्होंने कहा कि 1989 के कुम्भ में पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज के दर्शन पहली बार हुये थे। उनके जैसे विरक्त महात्मा मैने नहीं देखे।
स्वामी चिदम्बरानन्द जी महाराज ने कहा कि सन्यासी तो सन्यास दीक्षा के समय ही अपना शरीर त्याग कर देते हैं। उन्होंने कहा कि आसक्ति हमें संसार के बंधन में बांधती हैं, हमें असंग होने के लिये परमार्थ में आना पड़ता हैं, पूज्य स्वामी जी ने तो अपना सारा जीवन ही असंग होकर परमार्थ में रहकर सेवा की।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि मैं 30 वर्ष पूर्व जब भारत आयी तब मुझे मां गंगा जी के आशीर्वाद के साथ उनका दिव्य आशीर्वाद भी प्राप्त होते रहा। उनके ज्ञान, वैराग्य, सरलता, सहजता ने मुझे गहरायी से प्रभावित किया।
स्वामी श्री करौली शंकर जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी असंगानन्द जी का आचरण हम सब में प्रविष्ठ हो यही सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।
महामण्डलेश्वर स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा कि मेरा व पूज्य स्वामी जी का परिचय 50 वर्षों का है, अद्भुत संत थें वें।
स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज ने कहा कि वर्ष 1985 से वे पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज को जानते थे, वे गुरूपरम्परा के श्रेष्ठ शिखर पर थे।
स्वामी श्री जगताप जी महाराज ने कहा कि वे पूरे संत समाज के लिये एक दीपक की तरह थे।
स्वामी ऋषिश्वरानन्द जी महाराज ने कहा कि वे वर्ष 90 वर्ष की आयु तक सनातन धर्म की पताका फहराते रहे, वे श्री देवी सम्पद् मण्डल के प्राण थे।
स्वामी रामेश्वरानन्द जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी की सरलता, सादगी, सहजता से अनेकों ने अपना जीवन बदल दिया। उनका जीवन दर्शन निर्मलता से युक्त था।
स्वामी अनन्त देव जी महाराज ने कहा कि उनके असंगता के दर्शन पूरे समाज ने किये।
स्वामी गिरधर गिरि जी महाराज ने कहा कि पूज्य संतों के जीवन से ही अपने जीवन जीने की प्रेरणा मिलती हैं। जिस तरह से पूज्य स्वामी असंगानन्द जी ने जीवन जिया उसने सभी को प्रेरित व प्रभावित किया।
स्वामी बलराम दास जी महाराज, हठयोगी जी ने कहा कि पूज्य महाराज जी का जीवन सादगी, तपस्या, वैराग्य व ज्ञान का अद्भुत समन्वय था।
श्री रवीन्द्र शास्त्री जी महाराज ने कहा कि सरलता, सहजता व वैराग्य उनके जीवन में अनमोल रत्न थे।
स्वामी ज्योतिर्मयानन्द जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी जी का साधुत्व व संतत्व भाव अद्भुत था।
स्वामी दुर्गादास जी महाराज ने कहा कि ऐसे संत विरले ही मिलते हैं।
स्वामी हरिहरानन्द जी महराज ने अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंलि अर्पित की।
परमार्थ निकेतन गंगा जी के पावन तट पर सैकडों -सैकडों संतों ने पे्रमपूर्वक भंडारा ग्रहण किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने सभी को भाव के साथ विदा किया।
