परमार्थ निकेतन में नवरात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय योग गरबा रिट्रीट का आयोजन
भारत सहित विदेशी मेहमान भी ले रहे गरबा का आनंद
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में महाअष्टमी के अवसर पर विशेष यज्ञ का आयोजन
महाअष्टमी केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि चेतना का आह्वान
स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। नवरात्रि का पर्व शक्ति, भक्ति और नारी की दिव्यता के सम्मान का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में तीन दिवसीय योग गरबा रिट्रीट का आयोजन किया गया, जिसमें भारत सहित कई विदेशी मेहमानों ने सहभाग किया। यह आयोजन पारंपरिक सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें योग व नृत्य की विधाओं का अभ्यास कराया जा रहा है।
रिट्रीट में पारंपरिक वाद्य यंत्रों और भक्ति गीतों के साथ सामूहिक रूप से नृत्य कर नवरात्रि का उत्सव मनाया जा रहा है। विदेशी मेहमान भी भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के आनंद के साथ आध्यात्मिक ऊर्जा का भी अनुभव कर रहे हैं।
महाअष्टमी के अवसर पर परमार्थ निकेतन में विशेष यज्ञ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी की पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। यज्ञ में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन कर वशेष हवन और मंत्रोच्चारण कर विश्व शान्ति की प्रार्थना की।
महाअष्टमी का उत्सव नारी शक्ति के गौरव और सम्मान का प्रतीक है। कन्या पूजन के माध्यम से नौ कन्याओं को माँ दुर्गा के रूप में पूजन कर सम्मानित किया जाता है। इस अनुष्ठान के माध्यम से समाज में नारी शक्ति की गरिमा और उनकी सृजनात्मक एवं संरक्षणात्मक शक्ति का उत्सव मनाया जाता है।
योग गरबा तीन दिवसीय रिट्रीट में कई विदेशी मेहमानों ने भाग लेकर भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं का अनुभव किया। योग गरबा और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से वे भारतीय आध्यात्मिकता और नारी शक्ति के संदेश को प्रत्यक्ष रूप में अनुभव कर रहे हैं।
तीन दिवसीय योग गरबा रिट्रीट का समापन महाअष्टमी के विशेष यज्ञ के साथ हुआ। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी ने प्रतिभागियों को नारी शक्ति, भक्ति, योग और आध्यात्मिकता के महत्व पर प्रेरक संदेश दिए।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि नवरात्रि, भारतीय संस्कृति का वह अनुपम पर्व है जो शक्ति की उपासना और नारी के गौरव का उत्सव है। शक्ति और धर्म की विजय का यह पर्व हमें स्मरण कराता है कि स्त्री केवल सृजन का स्रोत ही नहीं, बल्कि संहार और रक्षा की क्षमता से भी परिपूर्ण है।
महाअष्टमी पर होने वाला कन्या पूजन धार्मिक अनुष्ठान तो है साथ ही कन्याओं में हम उस आदिशक्ति का दर्शन करते हैं जिसने समस्त ब्रह्मांड को जन्म दिया। उनके चरण धोना, तिलक करना और भोजन कराना नारी में दिव्यता का सम्मान है।
नवरात्रि का उत्सव नारी की भूमिका को केवल गृहस्थी तक सीमित नहीं करता, बल्कि उसे राष्ट्र, समाज और संस्कृति की धुरी के रूप में स्थापित करता है। स्त्री, सृजन की जननी होने के साथ-साथ ज्ञान, करुणा, बल और साहस की मूर्ति भी है।
स्वामी जी ने कहा कि नवरात्रि हमें संतुलन का मार्ग दिखाती है। नारी की अस्मिता, उसकी गरिमा और उसके अधिकारों की रक्षा के लिए समाज को जागरूक करने की आवश्यकता पहले से अधिक बढ़ गई है। कन्या भूण हत्या, स्त्री पर अत्याचार और असमानता जैसी चुनौतियाँ हमें यह याद दिलाती हैं कि महाअष्टमी केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि चेतना का आह्वान है। मां दुर्गा, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती इन तीन शक्तियों का संतुलन ही जीवन को पूर्णता प्रदान करता है। नवरात्रि, त्रिदेवी साधना है, जो हमें शक्ति देती है बुराई से संघर्ष करने की, विवेक देती है सही निर्णय लेने की, और समृद्धि देती है समाज को सशक्त बनाने की।