पता चल गया धराली, थराली में आयी तबाही का सच, बादल फटना नहीं यह था कारण, मौसम वैज्ञानिकों का खुलासा

Live 3 Min Read
3 Min Read

देहरादून. बरसात के इस सीजन में उत्तराखंड में तबाही की ऐसी तस्वीरे नजर आयी जिनसे सबका दिल सहम जाता है. धराली और थराली आपदा में संभावना जताई जा रही थी कि बादल फटने के चलते क्षीर गंगा में आई तबाही ने सब तहस-नहस कर दिया था लेकिन मौसम वैज्ञानिक इन घटनाओं को बादल फटना नहीं मान रहें हैं. उन्होंने खुलासा किया है.

देहरादून स्थित मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल जानकारी दी कि राज्य में ज्यादा बारिश ने बहुत नुकसान किया, उसे बादल फटना माना जा रहा था लेकिन मौसम विज्ञान का इसके पीछे अलग ही तर्क है.

रोहित थपलियाल ने बताया कि जब 100 एमएम/ प्रति घण्टा
बारिश होती है, तो उसे बादल फटना माना जा सकता है. इस मॉनसून में ऐसी कोई भी घटना रिकार्ड नहीं की गई है क्योंकि 1 घंटे में 1mm से 20mm तक तीव्र बरसात, 20 से 50 mm अति तीव्र और 50 से 100 mm तक बहुत तेज बारिश का दौर माना जाता है. इसमें तीव्र और अति तीव्र बरसात का अनुपात बहुत होती है. इसके साथ ही अत्यंत तीव्र बारिश 1 घंटे में 100mm बारिश होना माना जाता है बादल फटना भी रिपोर्ट हुई है.

अटरिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ माधवन नायर राजीवन के मुताबिक उत्तराखंड में इस सीजन में बादल फटने की घटना रिपोर्ट नहीं की गई है, उनके मुताबिक इसके लिए तय मानक होते हैं जिसके हिसाब से बादल फटना माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि पर्वतीय इलाकों में अतिवृष्टि नुकसान करती है, यहां 1 दिन में 5 एमएम भी बारिश होती है, तो भी वह बहुत जन धन की क्षति पहुँचा सकती है. पर्वतीय इलाकों में ढलान होती है,यहां बरसात में पानी, पत्थर, मलबा आता है जिससे सैलाब आ सकता है. हमने उत्तराखंड में अतिवृष्टि से बहुत नुकसान देखा है लेकिन बादल फटने की घटना होती तो राज्य में और ज्यादा क्षति हो सकती थी. उत्तराखंड सरकार के मुताबिक, बरसात के इस सीजन में में आपदा के चलते लगभग 5700 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है.

- Advertisement -
Share This Article