“मां वैष्णो के बुलावे पर: एक अलौकिक यात्रा का अनुभव”

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यह बात कुछ साल पुरानी है। एक बार मैं अपने माता-पिता के साथ माता वैष्णों देवी के दर्शन करने जम्मू-कटरा गई थी। इस यात्रा में मेरे पिता जी के दोस्त और उनके परिवार वाले भी थे। ऐसा माना जाता है कि जब तक माता वैष्णों का हमें बुलावा नहीं आता तब तक वहां जाना नहीं होता और जब बुलावा आता है तो इंसान चाह के भी रुक नहीं पाता। यहां का अनुभव आज तक मेरे दिल में बसा हुआ है।

हमने हरिद्वार से कटरा जाने का रिजर्वेशन कराया था। हमारी ट्रेन शाम 5 बजे के आस पास थी। मौसम ठंडा था, मन में एक अलग सी ही खुशी हो रही थी। जैसे ही सब ट्रेन में बैठे और ट्रेन चलते ही सब ने माता का जयकार लगाया। देखते ही देखते कब सुबह हो गई, कब हम कटरा पहुंचे पता ही नहीं चला। सुबह 9 बजे के आस पास हम कटरा पहुंचे, ट्रेन से उतरते ही चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़, ठंडी हवा और माता का जयकार गूंज रहा था। यह सब देखकर मन को बहुत शांति मिली रही थी, मानो माता ने वहीं अपने दर्शन करा दिए, फिर हम कुछ देर होटल में रुके थोड़ा आराम किया और फिर माता की चढ़ाई चढ़ना शुरू कर दिया था।

कटरा से माता का भवन लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर है। हमारी चढ़ाई बाणगंगा से शुरू हुई। ऐसा माना जाता है कि माता ने यहां बाण चलाकर एक पवित्र जलधारा निकाली थी। यहीं से सारे भक्त पहले नहाकर ही माता के दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं।

थोड़ी दूर चलते ही हम चरण पादुका पहुंचे जहां पर माता के पैरों के निशान है। वहां हम सर झुका कर आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ते गए। सब चढ़ाई चढ़ते गए माता के जयकार गूंजते रहे, पूरे रास्ते का माहौल एक दम भक्तिमय से भरा था, जगह- जगह खाना की व्यवस्था थी, लोगों के आराम के लिए मसाज सेंटर थे, लोगों की यात्रा सरल बनाने के लिए घोड़े,खच्चर आदि ये सब था। बीच-बीच में हमने आराम करा, चाय- नाश्ता करा और फिर वापस हमने चढ़ाई शुरू कर दी।

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देखते ही देखते हम माता के दरबार पहुंच गए, जैसे ही हम भवन में पहुंचे सामने माता की तीन पिंडिया रखी थी और दर्शन के बाद सारी थकान मिट गई। यह तीनों पिंडिया महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की है।

माता के दर्शन के बाद हम भैरव बाबा की चढ़ाई पर चढ़े ऐसा माना जाता है कि माता वैष्णो देवी की यात्रा बिना भैरव बाबा के दर्शन के अधूरी है। भैरव बाबा का मंदिर माता के भवन से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर था। रास्ता बहुत कठिनाई भरा था लेकिन माता के जयकारे के साथ हमने यह चढ़ाई चढ़ के दर्शन किए थे। घाटी से नीचे देखने पर बहुत ही सुंदर नजारा दिखाई देता है।

अब माता की पिंडियों के दर्शन और भैरव बाबा के दर्शन करने के बाद हम अर्धकुंवारी पहुंचे। यहां माता ने 9 महीने तपस्या की थी। यहां एक संकरी गुफा है जिसको गर्भजून गुफा कहा जाता है क्योंकि इसमें से निकलने के बाद ऐसा मेहसूस होता है जैसे कि दुबारा जन्म हुआ हो।

यह गुफा बहुत ही छोटी है। यहां घुटनों के बल जाना पड़ता है। यहां बहुत ही शांति थी। ऐसी मान्यता है कि इस गुफा में मन को शांत रख के ही जाया जाता है लेकिन जब गुफा से बाहर निकलो तो मन को बहुत सुकून मिलता है।

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मेरी यह यात्रा बहुत ही यादगार थी। जब-जब इस यात्रा के बारे में सोचो तो ऐसा लगता है जैसे हम वहीं पहुंच गए।

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