क्या है चौसिंग्या खाड़ू? जानिए इसका महत्व।

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देहरादून/रिया दुबे: 2026 में होने वाली नंदा राजजात यात्रा की अगवानी के लिए चौसिंग्या खाड़ू ने चमोली जिले में जन्म लिया। चौसिंग्या (चार सिंगों वाला भेड़) खाड़ू का जन्म कर्णप्रयाग ब्लॉक के कोटी गांव में हुआ है। इसके जन्म होने से पूरे गांव में खुशी का माहौल है। ऐसा माना जाता है कि चौसिंग्या खाड़ू मां नंदा के मायके में जन्म लेता है। इसका जन्म कोटी गांव में रहने वाले हरीश लाल के यहां हुआ है।

क्या है चौसिंग्या खाड़ू का महत्व?

चौसिंग्या खाड़ू उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके की लोकसंस्कृति का एक अनोखा रूप है। इसके चार सींग होते है और इसे रक्षक योद्धा माना जाता है। यह खासतौर पर मेलों और धार्मिक आयोजनों में झाँकी के रूप में दिखाई देता है, जहाँ कोई एक जन रंग-बिरंगे कपड़े और मुखौटे पहनकर इसका रूप धारण करता है। ढोल-दमाऊ और रणसिंघा की आवाज़ के साथ यह नाचते हुए बुरी शक्तियों को भगाता है और गाँव की रक्षा भी करता है। इसे शुभ माना जाता है और लोग इससे सुरक्षा और समृद्धि की कामना करते हैं। चौसिंग्या खाड़ू सिर्फ एक लोक पात्र ही नहीं बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत, आस्था और एकता का जीवंत प्रतीक भी है। चौसिंग्या खाड़ू मां नंदा देवी का देव रथ माना जाता है। मां नंदा देवी के समान को कैलाश तक इसकी पीठ पर लाद के पहुंचाया जाता है।

हर 12 साल में मां नंदा की राजजात यात्रा आयोजित की जाती है। यह यात्रा उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध यात्रा है जो की पुराने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह यात्रा न केवल उत्तराखंड की बल्कि पूरे देश भर की सबसे लंबी पैदल यात्रा है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु भी आते हैं।

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यह यात्रा चमोली जिले के नौटी गांव से शुरू होती है और नदियों, जंगलों, पहाड़ों और ऊंचे हिमालय की चट्टान को पार करते हुए रूपकुंड और हेमकुंड तक जाती है। हेमकुंड से आगे चौसिंग्या खाड़ू अकेले ही यह यात्रा करता है और लगभग 20 दिन में ये यात्रा पूरी हो जाती है। नंदा भक्त आज भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

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