कौन है भगवान जगन्नाथ? क्यों निकलती है हर साल इनकी यात्रा? आखिर क्या है इनका इतिहास?

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इस साल 27 जून से भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरू हो गई है, जो की आठ जुलाई तक आयोजित होगी। यह यात्रा हर साल आषाढ़ के महीने से शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर शुरू होती है। इसकी तैयारी ओडिशा के पुरी में की जाती है और खास तौर पर बड़े ही उत्सव के साथ मनाया जाता है, इसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस यात्रा में 3 रथ निकाली जाती है जिसमें एक रथ पर भगवान जगन्नाथ और अन्य 2 रथों पर इनके भाई बहन को दर्शाया जाता है। रथ यात्रा को शुरू करने से पहले तीनों रथों की पूजा होती है और पुरी के राजा सोने की झाडू से रास्ते की सफाई करते हैं।

जैसा कि आपको बताया गया कि इस यात्रा में 3 रथ निकलते हैं जिनमें एक में भगवान जगन्नाथ होते हैं और एक रथ में इनकी बहन सुभद्रा और एक रथ में इनके भाई बलभद्र विराजमान होते हैं। यात्रा में सबसे पहले बलभद्र का रथ जाता है, दूसरा रथ इनकी बहन सुभद्रा और तीसरा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है।

भगवान जगन्नाथ कौन हैं?

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भगवान जगन्नाथ हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं जिन्हें भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है।

“जगन्नाथ” शब्द का अर्थ होता है — “जग” यानी दुनिया और “नाथ” यानी स्वामी, मतलब “पूरे संसार के स्वामी”।

इनकी मूर्ति इनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान होती है। ये त्रिमूर्ति पुरी (उड़ीसा/ओडिशा) के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में स्थापित हैं।

रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?

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रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की वार्षिक यात्रा है जिसमें उन्हें विशाल रथों में बैठाकर पुरी के मुख्य मंदिर से लगभग 3 किमी दूर स्थित गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है। वहाँ वे 9 दिन तक रहते हैं और फिर बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा) के ज़रिए वापिस आते हैं। यात्रा के 15 पहले भगवान जगन्नाथ को 108 बार शुद्ध कलश से नहलाया जाता है। स्नान के बाद 14 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ को एकांतवास में रखा जाता है क्योंकि भगवान 15 दिनों के लिए बीमार हो जाते हैं। इस स्नान को देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है।

इस यात्रा के पीछे की मान्यता:

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1. मातृभवन यात्रा: मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपनी मौसी (मां के घर) गुंडिचा मंदिर जाते हैं।

2. जनता के अनुसार: भगवान साल में एक बार रथ पर सवार होकर सभी भक्तों को दर्शन देते हैं, क्योंकि आम दिनों में मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है।

3. भक्ति और समर्पण का प्रतीक: भक्त रथ को खींचकर भगवान की सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।

चालिए जानते हैं तीनों रथों के नाम

भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदी घोष है और गरुड़ध्वज से जाना जाता है। इस रथ में 16 पहिए होते हैं और यह रथ 42.65 फिट है। इनके रथ का रंग लाल और पीला होता है।

बलभद्र का रथ भगवान जगन्नाथ के रथ से ऊंचा होता है, यह 43.30 फिट ऊंचा है। इनके रथ का नाम तालध्वज है। इनके रथ में 14 पहिए है।

सुभद्रा का रथ का नाम दर्पदलन है। यह रथ 42.32 फीट ऊंचा है। इनके रथ का रंग लाल और काला है। इसमें 12 पहिए लगे होते हैं।

भगवान जगन्नाथ का इतिहास क्या है?

1. प्राचीन कथा:

एक पौराणिक कथा के मुताबिक राजा इन्द्रद्युम्न को विष्णु भगवान ने सपने में दर्शन दिए और अपनी मूर्ति बनाने का आदेश दिया। उन्होंने एक रहस्यमय बढ़ई को मूर्तियाँ बनाने को कहा जिसने एक शर्त रखी – “जब तक मैं दरवाज़ा बंद रखूं, कोई अंदर न आए” लेकिन कई दिनों तक दरवाज़ा न खुलने पर राजा ने अंदर झाँका और वह बढ़ई (जो स्वयं विष्णु थे) गायब हो गया। अधूरी मूर्तियाँ वहीं रह गईं – जिनके हाथ-पैर अधूरे हैं, और वही आज की जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा की मूर्तियाँ हैं।

2. ऐतिहासिक दृष्टिकोण:

पुरी का मंदिर 12वीं सदी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की रथ यात्रा की परंपरा हजारों साल से चलती आ रही है। इसका ज़िक्र पुराने ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के लेखों में भी मिलता है।

आखिर क्यों हर साल स्नान पूर्णिमा के बाद 15 दिन के लिए पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ बीमार? क्या है इसका रहस्य?

हर साल भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के 15 दिन पहले बीमार पड़ जाते हैं। यह बात एक कथा से जुड़ी है। चलिए जानते हैं क्या है इसका रहस्य।

एक बार की बात है पुरी में भगवान जगन्नाथ का एक बहुत बड़ा भक्त था जिसका नाम माधवदास था,जिन्होंने अपनी पत्नी के देहांत के बाद अपनी पूरी जिंदगी भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दी। एक बार उनके भक्त को गंभीर बीमारी हो गई जिससे उनका शरीर बहुत सूखता गया और वह बहुत ही दुबले पतले हो गए और चल भी नहीं पा रहे थे। इसके बाद भगवान जगन्नाथ खुद धरती पर अपने भक्त की सेवा करने आ गए। जब कुछ दिनों बाद माधवदास को होश आया तो उसने भगवान को अपने पास देखा और वह भगवान से कहने लगा कि आप तो त्रिलोकी नाथ हैं, आप चाहते तो मेरी यह बीमारी है एक बार में ठीक कर देते आपको मेरी सेवा ना करनी पड़ती तब भगवान जगन्नाथ ने मुस्कुरा कर बोला ‘माधवदास अगर तुम इस जन्म में इस बीमारी को न भोगते तो तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ता और ये में नहीं चाहता, तुम्हारे अभी भी 15 दिन बाकी हैं तो तुम्हारी ये बीमारी मैं अपने ऊपर लेता हूँ। तब से हर साल 15 दिन के लिए भगवान बीमार पड़ जाते हैं और मंदिर के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के एकांतवास के इस समय को “अनसर”कहा जाता है और भगवान का इलाज होता है।

फिर 14 दिनों बाद भगवान ठीक हो कर खुद ही भक्तों को दर्शन देने के लिए निकल जाते हैं।

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