देहरादून/ प्रीति मौर्य:नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की सबसे पवित्र, कठिन और ऐतिहासिक धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह यात्रा माता नंदा देवी को पूरी तरह से समर्पित होती है, जिन्हें उत्तराखंड की कुल देवी भी माना जाता है। इस यात्रा में हजारों श्रद्धालु और भक्त भाग लेते हैं और यह यात्रा 12 साल में एक बार आयोजित होती है। यह यात्रा माता नंदा देवी की विदाई के रूप में मानी जाती है। माना जाता है कि नंदा देवी अपने ससुराल कैलाश पर्वत की ओर जाती हैं। नंदा देवी को शिव जी की पत्नी पार्वती का ही रूप माना जाता है। यह यात्रा प्रेम, श्रद्धा, बलिदान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यात्रा की शुरुआत कुर्की गांव चमोली ज़िला से होती है, जिसे नंदा देवी का मायका माना जाता है। मुख्य यात्रा नैनीताल, अल्मोड़ा, ग्वालदम, देवाल, बगजी बगड़, बेदनी बुग्याल, रूपकुंड और हेमकुंड तक जाती है। यह यात्रा लगभग 280 किलोमीटर की होती है, और इसे पूरा करने में 18 से 22 दिन तक लगते हैं। छोटी राजजात यात्रा हर साल होती है और नजदीकी गांवों तक सीमित होती है। बड़ी राजजात यात्रा 12 वर्षों में बहुत विशाल होती है और हजारों की संख्या में लोग इसमें भाग लेते हैं। इस यात्रा में चार कन्याएं कन्यादेवी, छतोलिया और रामगोलू देवता की झांकियां शामिल होती हैं। इस यात्रा में रूपकुंड झील भी आता है, जिसे “कंकालों की झील” कहा जाता है क्योंकि वहां कई रहस्यमयी मानव कंकाल पाए गए हैं। यात्रा के दौरान भक्त भजन-कीर्तन, नृत्य, पारंपरिक वेशभूषा में रहते हैं। नंदा देवी राजजात यात्रा केवल धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक एकता, लोककला, लोकसंस्कृति और परंपरा की भी झलक देती है। इसमें गढ़वाली और कुमाऊंनी समुदायों की एकता साफ देखने को मिलती है।
कौन हैं नंदा देवी? क्या है नंदा देवी राजजात यात्रा का मतलब?

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