नैनीताल/ आमडण्डा/कांता पाल – भारत को आजाद हुए 75 साल बीत गए जबकि उत्तराखंड को बने हुए 21 साल पूरे हो चुके हैं । भले ही उत्तराखंड में विकास ने उत्तराखंड की तस्वीर बदली है लेकिन उत्तराखंड का एक गांव ऐसा भी है जहां आजादी के बाद से अब तक भी बिजली पानी और सड़क वहाँ तक नहीं पहुंच पाई। भले ही भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ, लेकिन उत्तराखंड के रामनगर स्थित आमडंडा खत्ता गांव के लोग अंधे जिंदगी से आजाद नहीं हो पाए। जिस देश की ऊंची ऊंची इमारत आसमान को छू रही है उस देश के कई राज्यों को बिजली देने वाले उत्तराखंड के इस गांव में आज भी बच्चे लालटेन की रोशनी में पढ़ने पर मजबूर हैं। वैसे तो राज्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारें रही है, लेकिन अब तक विकास की थोड़ी सी भी रोशनी यहाँ नहीं पहुंच पाई।
बिजली पानी की पहुंच से दूर आमडंडा खत्ता गांव के लोग लगातार राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं। वही
आमडंडा खत्ता गांव में बिजली पानी,सड़क और शिक्षा के मसले को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में वत्सल फाउंडेशन के सचिव श्वेता माशीवाल ने याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने प्रशासन से 4 हफ्ते का वक्त देकर जवाब मांगा है। आजादी के 7 दशकों के बाद भी देश के कई राज्यों के गांव विकास से अछूते हैं, उनमें से एक है उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल के रामनगर का आमडंडा खत्ता गांव, जहां आजादी से अब तक बिजली की रोशनी की एक किरण तक नहीं पहुंची, पानी और शिक्षा सुविधाओं से भी वंचित इस गांव की जनता अक्सर सरकार से गुहार लगाती आयी है। वत्सल फाउंडेशन की सचिव श्वेता माशीवाल ने आमडंडा खत्ता के निवासियों को बिजली, पेयजल और विद्यालय जैसी मूलभूत सुविधाएं दिलाये जाने को लेकर जनहित याचिका हाई कोर्ट में दाखिल की थी जिसपर हाल ही में हाईकोर्ट ने सुनवाई की है। मामले को सुनने के बाद कोर्ट की खंडपीठ ने भारत सरकार के वन सचिव, सदस्य सचिव नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड, प्रमुख वन्यजीव संरक्षक उत्तराखंड, निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, अधिशासी अभियंता यूपीसीएल रामनगर ऒर अधिशासी अभियंता जल संस्थान को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका में बताया गया है कि आमडंडा क्षेत्र में विद्युतीकरण को लेकर 2015 में धनराशि आबंटित हो गयी थी और संयुक्त निरीक्षण के अनुसार आमडंडा में विद्युतीकरण के लिए एक भी पेड़ नहीं काटा जाना है। जबकि केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार सिर्फ प्रति हेक्टेयर 75 से अधिक पेड़ काटे जाने पर ही वन ग्राम में विद्युतीकरण हेतु केंद्र सरकार की अनुमति की जरूरत होती है लेकिन इस मामले में अधिकारियों की हीला हवाली के कारण 2015 से आज तक विद्युतीकरण नहीं हो पाया है। इसी तरह आमडंडा में पेयजल को लेकर भी वर्ष 2012 से आज तक कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है। याचिकाकर्ता का कहना था कि आमडंडा खत्ता के ग्रामीण बिजली पानी और शिक्षा के अभाव में कष्टमय जीवन जी रहे हैं और अधिकारियों द्वारा लगातार उनके अधिकारों की अनदेखी की जा रही है। जनहित याचिका में कोर्ट से प्रार्थरना की गई है कि उन्हें जरूरी मूलभूत सुविधाएं दिलाई जाय।
सत्ता पर काबिज डबल इंजन की भाजपा सरकार दावा कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश के मुखिया बनने के बाद देश का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है जहां बिजली नहीं पहुंच पाई हो, तो दूसरी तरफ विपक्ष लगातार बिजली और पानी के संकट को लेकर सरकार को घेरने का काम कर रहा है। बिजली ,पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर सियासत की बहस तो जारी है लेकिन सवाल यह है कि ऐसे गांव के अंधेरे आखिर कौन दूर करेगा ?
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