देहरादून. पूरी दुनिया क्लामेट चेंज के दुष्परिणामों से गुजर रही है, लेकिन उत्तराखंड में क्लाइमेट चेंज के परिणामों का असर दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है। राज्य में प्राकृतिक आपदाताओं की तादाद भी लगातार बढ़ रही है। सुनामी को छोड़कर दुनिया की कोई भी आपदा ऐसी नहीं, जिससे उत्तराखड प्रभावित न होता हो। देहरादून स्थिति एसडीसी फाउंडेषन द्वारा प्रकाषित पुस्तक ‘मेकिंग मोलहिल्स ऑफ माउंटेंस: टेल्स ऑफ उत्तराखंड्स क्लाइमेंट क्राइसेस एंड एन असर्टेंन डेवलमेंट मॉडल’ के दूसरे संस्करण के लोकार्पण के मौके पर विषेषज्ञों ने यह बात कही।
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दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर में आयोजित पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर टॉक एंड राउंड टेबल डायलॉग कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तराखंड में पूर्व मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल मौजूद थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड आपदाओं का राज्य है। सुनामी के अलावा हर तरह की आपदाएं इस प्रदेष में आती हैं। उन्होंने परंपरागत ज्ञान और आधुनिक ज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर आपदाओं का असर कम करने और आपदाओं से निपटने के योजनाएं बनाने की जरूरत पर जोर दिया। उनका कहना था कि उत्तराखंड राज्य न सिर्फ प्राकृतिक बल्कि मानवीय आपदाओं से भी जूझ रहा है। विभिन्न निर्माण कार्यों के लिए पहाड़ों को अवैज्ञानिक रूप से काटने और ब्लास्ट किये जाने से पहाड़ काफी कमजोर हो गये हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील राजीव दत्ता ने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से उत्तराखंड जितना संवेदनषील है, उतना ही ज्यादा यहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली योजनाएं बनाई जा रही हैं। उन्होंने ऐसी अनियमितताओं को लेकर एनजीटी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई जनहित याचिकाएं दायर की हैं। क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट के साउथ एषिया डायरेक्ट आदित्य पुंडीर ने कहा कि उत्तराखड के हिमालयी क्षेत्र में क्लाइमेट चेंज का असर बाकी दुनिया से दोगुना है। ऊंचाई बढ़ने से साथ ही यह असर भी ज्यादा बढ़ रहा है। उन्होंने जंगलों की आग और विकास के नाम पर पेड़ काटने को सबसे ज्यादा खतरनाक बताया और कहा कि जंगल कम होने से पानी के स्रोत कम होते जा रहे हैं। उत्तराखंड में 60 हजार पानी के स्रोत थे, अब सिर्फ 12 हजार रह गये हैं। उन्होंने पलायन रोकने के लिए जीवन स्तर में सुधार, सोलर एनर्जी और बेहतर इंटरनेट उपलब्धता को जरूरी बताया। सामाजिक कार्यकर्ता राजीव नयन बहुगुणा ने कहा कि आज के दौर में रोजगार से भी बड़ी जरूरत पर्यावरण संरक्षण है। धरती रहेगी तो ही बाकी सभी काम होंगे। उन्होंने कहा कि विष्व में निर्माण के साथ ध्वंस करने वाले भी सक्रिय हैं। हमें निर्माण के साथ खड़े होना है।
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पुस्तक में प्रकाषित लेखों के कुछ लेखकों ने भी अपने लेखों के बारे में बताया। इनमें 10वीं की छात्रा सारा गर्ग के अलावा महिका फर्त्याल, गौतम कुमार, आदित्य पुंडीर, डॉ. मयंक बडोला और डॉ. अरुणिमा नैथानी षामिल हैं। पुस्तक के संपादक अनूप नौटियाल और प्रेरणा रतूड़ी ने पुस्तक के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया। इस मौके पर पर्यावरण और स्वरोजगार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाली राज्य के तीन महिलाओं की सक्सेस स्टोरी भी प्रदर्षित की गईं।