जैसा कि हम सब जानते हैं कि उत्तराखंड के कुमाऊं जिला नैनीताल बाबा नीम करौली के धाम के लिए जाना जाता है। यहां पर लोग दूर – दूर से बाबा के धाम के दर्शन करने के लिए आते हैं। यह जगह भक्ति भाव के लिए बहुत प्रसिद्ध है। नीम करौली बाबा, जिनका असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था, का जन्म लगभग 1900 में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद ज़िले के अकबरपुर गांव में हुआ था। बचपन से ही वे एक आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और विवाह के बाद भी वे सांसारिक जीवन में अधिक नहीं रुके। कुछ समय बाद वे घर छोड़कर साधु बन गए और वर्षों तक भारत के कई हिस्सों में साधना करते रहे। उन्हें भगवान हनुमान का परम भक्त माना जाता है और लोग कहते हैं कि उनके भीतर चमत्कारी शक्तियाँ थीं, जैसे बिना बोले ही किसी के मन की बात जान लेना, बीमार लोगों को छूते ही ठीक कर देना, और अनेक भविष्यवाणियाँ करना। उन्होंने भारत में कई जगहों पर आश्रम स्थापित किए, लेकिन सबसे प्रसिद्ध आश्रम उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित “कैंची धाम” है।
चलिए जानते हैं कैसे पड़ा बाबा के आश्रम का नाम कैंची धाम।
इस आश्रम का नाम “कैंची” इसलिए पड़ा क्योंकि यह जगह दो पहाड़ों के बीच है जो देखने में कैंची की तरह लगती है। यानी दो पहाड़ियों के बीच से बहती सड़क और नदी मिलकर ऐसा नज़ारा बनाती है जैसे कोई कैंची खुली हुई हो। इसी विशेष भौगोलिक बनावट की वजह से इस जगह को “कैंची” कहा जाने लगा।
इस जगह का एक और रहस्यात्मक पहलू यह है कि यहां की ऊर्जा बहुत शांत, दिव्य और ध्यान के लिए उपयुक्त मानी जाती है। नीम करौली बाबा को यह स्थान बहुत प्रिय था। उन्होंने यहाँ सन 1960 के दशक में आश्रम की स्थापना की और भगवान हनुमान का मंदिर बनवाया। उन्होंने स्वयं इस जगह को चुना क्योंकि यह आध्यात्मिक साधना और शांति के लिए अत्यंत उपयुक्त थी। बाबा कहते थे कि यह स्थान दिव्य शक्तियों से युक्त है, और यहाँ आने वाले भक्तों को अलौकिक अनुभव होते हैं। बाबा की उपस्थिति और इस स्थान की प्राकृतिक बनावट ने मिलकर इसे “कैंची धाम” के नाम से प्रसिद्ध कर दिया। आज यह धाम ना केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में श्रद्धा का केंद्र बन चुका है, और हर साल 15 जून को यहाँ विशाल मेले और भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं।
आखिर क्यों बाबा नीम करौली को माना जाता है हनुमान की का अवतार ?
नीम करौली बाबा को हनुमान जी का अवतार इसलिए माना जाता है क्योंकि उनके जीवन और आचरण में हनुमान जी की भक्ति, सेवा और चमत्कारिक शक्तियों की झलक साफ दिखाई देती थी। बाबा का पूरा जीवन हनुमान भक्ति में समर्पित था — वे हमेशा हनुमान जी की पूजा करते, उनके नाम का जाप करते और अपने भक्तों को भी हनुमान जी की भक्ति करने की प्रेरणा देते थे।
उनके आश्रमों में हनुमान जी के भव्य मंदिर बनाए गए, खासकर कैंची धाम में हनुमान मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। बाबा खुद कहते थे, “सब कुछ हनुमान जी ही कर रहे हैं, मैं तो बस माध्यम हूँ।”
भक्तों के अनुसार, बाबा नीम करौली के पास चमत्कारी शक्तियाँ थीं —
वो बिना कुछ कहे किसी के मन की बात जान जाते थे।
छूते ही बीमारियां दूर हो जाती थीं।
कई बार उन्होंने भक्तों को बड़े संकटों से बचाया, और लोगों की अधूरी इच्छाएं पूरी कीं।
उन्होंने जीवनभर त्याग, सेवा और भक्ति का रास्ता अपनाया — जैसे हनुमान जी ने भगवान राम जी के लिए किया।
उनके भक्तों का मानना है कि जिस तरह हनुमान जी कलयुग में अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, वैसे ही बाबा नीम करौली ने भी अपने भक्तों की हर कठिनाई में सहायता की। इसके अलावा, बाबा ने कभी अपने चमत्कारों का दिखावा नहीं किया, बल्कि हमेशा सादा जीवन जिया — यही गुण उन्हें हनुमान जी के स्वरूप के और भी करीब लाता है। इसलिए लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं, और आज भी उनकी पूजा करते हैं।
उनके विदेशी भक्तों में अमेरिका के प्रसिद्ध प्रोफेसर रामदास (रिचर्ड एलपर्ट), एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स और फेसबुक के मार्क ज़ुकरबर्ग तक शामिल रहे, जिन्होंने बाबा से प्रेरणा ली और उनके कैंची धाम आश्रम में दर्शन किए।
कब और कहां बाबा ने त्याग दिए अपने प्राण ?
नीम करौली बाबा ने 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में अपने शरीर का त्याग किया, लेकिन आज भी उनके आश्रमों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। हर साल 15 जून को कैंची धाम में भव्य मेला और भंडारा होता है, जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। बाबा का मानना था कि भगवान को पाने का सबसे सरल मार्ग सेवा और सच्ची भक्ति है। आज भी उनके भक्त मानते हैं कि बाबा केवल शरीर से गए हैं, आत्मा से वे आज भी सबकी सहायता कर रहे हैं। उनका जीवन एक जीवंत प्रेरणा है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से चमत्कार आज भी होते हैं।